जब देखा सपनों की नदी का दूसरा किनारा
कितनी ख़ूबसूरत सपनों की नदी
रोज़ बदलते रंग
एक महकते उजाले का वादा
ख़ूबसूरत चेहरे
सपनों का घर
सपनों का नगर
महकती रसोई
खनकते कंगन
नींद में पार की सपनों की नदी
ज़िन्दगी की नाव पर बैठकर
कोई रंग नहीं है
धुंध छटी देखा कोई संग नहीं है
सूनी ज़मीन
सुनसान नगर
अकेली रसोई
कोई सुनने वाला नहीं सो सूने कंगन
मोहब्बत का नाम लिया
और आँखें भर आयीं
बचपन में देखे सपने याद किये
बस जली हुई ख़ाक हाथ आयी
2 comments:
Rashmi...This is so touching...It began with a beautiful dream...and a Heartfelt end!
Love your creations in Hindi :)
Bahut sundar , keep writing !!
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