कौन पढ़ता है किताबें ? क्यूँ पढ़ी जाती हैं किताबें?
कुछ लोग किताबें पढ़ते हैं प्रेरणा पाने के लिए , कुछ लोग पढ़ते हैं कुछ समय के लिए इस दुनिया को भूल जाने के लिए । कुछ लोग ज्ञान बढ़ाने के लिए, कुछ अपना व्यक्तित्व उभारने के लिए पढ़ते हैं.
कुछ लोग इसलिए भी पढ़ते हैं किताबें कि कह सकें कि हमने यह किताब पढ़ी है, और उस कृति के गौरव के प्रतिफलित आलोक में खुद को भी आलौकिक महसूस करें ।
कुछ लोग अपनी समस्याओं का समाधान ढूंढते हैं किताबों में, कुछ अपनी रुचियों में और महारथ हासिल करने करने के लिए किताबें पढ़ते हैं ।
कोई ख़ुद को किताबों मे खो देना देना चाहता है, कोई उनमे ख़ुद को पाना चाहता है.
कोई खुद के मन को समझना चाहता है, कोई दूसरों की सोच को समझना चाहता है
कोई अपनी धरोहर का इतिहास जानना चाहता है, कोई उसकी विशालता और वैभवता नापना चाहता है
कोई अनदेखे शहरों की अनसुनी कहानी पढ़ना चाहता है, उनके समुंदरों की फेनिल आभा छवियों में देखना चाहता है।
कोई भविष्य की सम्भावनांओं को आंकना चाहता है, बदलती दुनिया की तेज़ रफ़्तार से कदम मिलाना चाहता है,
कोई कुछ पल वही पुराने दिनों का ठहराव महसूस करना चाहता है, फुर्सत की , बेफ़िक्री की दुपहरें फिर जीना चाहता है
कोई व्यंग में आमोद ढूंढता है, कोई दर्द में ख़ूबसूरती
जो इस तरह जिये के मिसाल बन गए, कोई उनकी कहानी पढ़के जीने का ढंग सीखना चाहता है, कोई उस महानता का विलम्बित साक्षी बन इस बात भर से मुग्ध होना चाहता है, ख़ुद को आश्वस्त करना चाहता है कि यह स्तर भी संभव है
कोई कविता का पुजारी है, कोई ग़ज़लों का, तो कोई कहानियों का
कोई तर्क से परे भावुकता के स्वप्न देश में बहना चाहता है, कोई तर्क, विज्ञान, न्याय शास्त्र के के सूत्र ढूंढना चाहता है।
फिल्मों की दुनिया , खेल, सँगीत, पर्यावरण और प्रकृति की दुनिया, यह सब ढूंढता है किताबों में।
और मज़े की बात यह है कि हर तरह के सक्स की हर तरह की ज़रुरत के लिए किताबें किसी न किसी ने लिख रखी हैं ।
पर यह किताबों की दुनिया किसी भूलभुलैया से कम नहीं, अनगिनत तारा मंडलों से भरे ब्रम्हाण्ड से कम नहीं;
किसी महादेश से कम नही।
ऐसे में किसी ग़लत दिशा में चलना, अपनी मन चाही कृति का न मिल पाना, सही सोचकर चुने हुए रास्ते पर चलते हुए अंत में निराशा का हाथ आना, कोई बड़ी बात नहीं ।
जिस प्रकार कोई व्यक्ति जब किसी दार्शनिक स्थान को देखता है, वह सिर्फ उस स्थान को ही नहीं बल्कि उस स्थान पर अपने अंदर बदले हुए उस इंसान को भी देखता है, जो शायद उसे अपने शहर में नहीं दिखता, वह सिर्फ उस स्थान की छवि ही अपने साथ लेकर नहीं लौटता, बल्कि एक अनुभव को अपने अंदर समाये, लौटता है, अपने आप से इस एक हलके से वादे के साथ की कभी फिर यहीँ आना है , और यही पल जीना है।
लेकिन इस सब की शुरुआत होती है उस दार्शनिक स्थान के होने से, और उस व्यक्ति के पास उस स्थान के होने की ख़बर से ।
किताबों की दुनिया अपने आप में एक सभ्यता है, यह हमारी धरोहर है। चुन चुन के योग्य कृतियों को इस धरोहर में शामिल करना, और योग्य लेखकों को उत्साहित करना हमारी ज़िम्मेदारी है, साहित्य जगत के प्रति ।
२५. ०१. २०१६
बेंगलूरु
रश्मी रेखा मान्ना