कल समुन्दर किनारे रेत पर चलते चलते निहार रही थी रेत के माथे पर बनती बिगड़ती लकीरों को ;
लकीरें जो समुन्दर हर पल के पलक झपकते बना रहा था
पैरों में ठोकर सी लगी ; नीचे देखा आँखें चौंधिया गयीं ;
खूबसूरत सुनेहरा चमकता एक तिकोना झाँक रहा था रेत के सीने से; रेत समय की
जैसे ज़िन्दगी के सुनहरे अरबी के पत्ते पर चमकता जीवनदायी अमृत बिंदु;
किसी भी पल परिस्थितियों की मिट्टी पर गिरे और खो जाए
जैसे ज़िन्दगी के सुनहरे अरबी के पत्ते पर चमकता जीवनदायी अमृत बिंदु;
किसी भी पल परिस्थितियों की मिट्टी पर गिरे और खो जाए
हठी आशा के हाथों वास्तविकता की रौशनी को ढका तो उसमे अपनी दो आँखें दिखाई दीं
कभी इतनी सुन्दर न लगी थीं जो सपनों का काजल लगाये उस क्षण उस तिकोने में दिखाई दीं
मन में सोच लिया सुनहरी सपनों के ढाँचे में सजाऊँगी वो आईना अपने घर के सबसे अँधेरे कोने में
खिल जायेगा वो कोना; जब तब रूप निहारुँगी उसमे
आईना वादा सा कर रहा था हमेशा मेरा दमकता चेहरा ही दिखाएगा
जीवन सुन्दर लगने लगा; खुद को उस आईने में न जाने किस किस रूप में न देखा
बस सब्र न हुआ; अभी उठाकर अपना बना लूँ इस आईने को
हाथ बढाया; ये क्या !?! जितना तिकोना उभरा था उतना ही हाथ में आ गया
न वज़न था, न गहरायी
आईना था नहीं अलबत्ता हुआ करता था; फ़क़त कांच का टुकड़ा था !!
हाय री क़िस्मत सपने दिखाकर तोड़ने की आदत न छूटी कभी तुझसे
जब पाँव ज़मीन पे वापस आए, नख से शिख तक दर्द कौंध गया;
देखा तो सूर्ख थे; सूर्ख बूंदों के मोती टपक रहे थे, एडियों पे लाल लकीर बनाए
आँखों में सपनों का काजल , होठों पर हंसी की सुर्खी, नज़रों में शोखी न सही
यादगार एक सूर्ख दाग तो दे ही गया वो काँच का टुकड़ा... वो अधूरा आईना
जब पाँव ज़मीन पे वापस आए, नख से शिख तक दर्द कौंध गया;
देखा तो सूर्ख थे; सूर्ख बूंदों के मोती टपक रहे थे, एडियों पे लाल लकीर बनाए
आँखों में सपनों का काजल , होठों पर हंसी की सुर्खी, नज़रों में शोखी न सही
यादगार एक सूर्ख दाग तो दे ही गया वो काँच का टुकड़ा... वो अधूरा आईना
9 comments:
Thanks for inviting me to visit here..RM..its a beautiful write..yes.. but i am somehow always writing endings on a positive note.. your write inspired me to spontaneously create a poem which I am putting here as my comment..hope you will like it..
सभी सपने पूरे हों यह ज़रूरी तो नहीं
सभी आइने अधूरें हों यह ज़रूरी तो नहीं
मिलेगा इक दिन आइने का ऐसा टुकड़ा
दिखेगा जिसमें हर पल हंसता मुखड़ा
वोह पल ख़ुशी का कल में नहीं होगा
हथेली पर नाचता आज में यहीं होगा
बस सोचों में उसे अपनी चमकने देना तुम
आँखों में ख़ुशी को दमकने देना तुम
इन पन्नों पर यूं हीं लिखते रहना
शब्दों में यहाँ यूँ ही दिखते रहना...
God bless you!!!
Thank you so much.... the blessing overwhelmed me...the words beautiful
About the positive ending... whenever I reach out for positives.. they always recede.. may be that is reflected whether I want it or not... have you read "Games at Twilight"
by Anita Desai ? ... that kid Ravi ... who's has come out of hiding in the game of hide-n-seek only to find that all the other children have long since stopped playing and left...all this while he had been waiting to be found by the children... nobody even remembered that he too was playing...
But yes I am luckier than Ravi to be able to understand things. The reason I invited you was that I wanted those words from you. They somehow seem more real and more possible to me when said by someone who has seen life more and walked through it, appreciated it and not just glided or slid through without noticing anything. Thank you so much sir for those words, that help look up again and gather myself.
Take care sir
Regards
Thanks RM, keep writing. Don't forget to see my post today for OSI..I think I am blessed as life keeps on putting me in situations where i keep learning..
Thanks RM..you may share the link if it doesn't technically pose any problem.. yes, I will feel honoured.. and will wait for your 'Positive' post..as I have always maintained.. Let Us Pracitce Happiness...
Oh, you have put me on a very high padstel..I think life has just begun..too about 50 years to make a start.. thanks... yes I am on facebook..too..
You are too humble sir... as expected :) :)
May I send you a friend request on Face Book
Regards
In fact i thought you might have sent it already..yes you can do that..
I've sent it now :)
I thought I better ask before sending a request.
Regards
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