Tuesday, February 22, 2011

जब देखा सपनों की नदी का दूसरा किनारा


जब देखा सपनों की नदी का दूसरा किनारा


कितनी ख़ूबसूरत सपनों की नदी 
रोज़ बदलते रंग
एक महकते उजाले का वादा
ख़ूबसूरत चेहरे

सपनों का घर
सपनों का नगर
महकती रसोई
खनकते कंगन

नींद में पार की सपनों की नदी
ज़िन्दगी की नाव पर बैठकर
कोई रंग नहीं है
धुंध छटी देखा कोई संग नहीं है

सूनी ज़मीन
सुनसान नगर
अकेली रसोई
कोई सुनने वाला नहीं सो सूने कंगन

मोहब्बत का नाम लिया
और आँखें भर आयीं
बचपन में देखे सपने याद किये
बस जली हुई ख़ाक हाथ आयी
 
 

2 comments:

Beyond Horizon said...

Rashmi...This is so touching...It began with a beautiful dream...and a Heartfelt end!

Love your creations in Hindi :)

Adi said...

Bahut sundar , keep writing !!

Resolve

Don’t ever try to become somebody else’s dream. That is when you lose the freedom to shape your life your own way. It is way more rewarding ...